GANDHI GODSE - EK YUDH

 

गांधी गोडसे एक युद्ध – फ़िल्म अच्छी बनी है मगर इतिहास से है दूर... पर इसे देखना ज़रूर

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मैं हर तरह की फिल्में देखता हूँ| कुछ अच्छी लगती हैं तो कुछ अच्छी नहीं लगती हैं| पिछले 26 जनवरी यानी कि रिपब्लिक डे के मौके पर एक फ़िल्म रिलीज़ हुई थी| जिसकी ट्रेलर देखने के बाद से ही मैंने मन बना लिया था कि ये फ़िल्म मुझे देखनी ही है| फ़िल्म के डाइरेक्टर हैं राज कुमार संतोषी जिनकी ऑल्मोस्ट सभी फिल्में मैंने देखी है| बतौर डाइरेक्टर वो मुझे बेहद पसंद हैं

'दामिनी', 'घायल', 'अंदाज़ अपना अपना', 'लज्जा' जैसी फिल्में बनाने वाले फिल्म मेकर राजकुमार संतोषी तक़रीबन 9 साल के लंबे इंतज़ार के बाद वापस फ़िल्म लेकर हाज़िर हैं| फिल्म का कॉन्सेप्ट मुझे बहुत अच्छा लगा| ये एक पीरियड फ़िल्म है जिसे मैं एक्सपेरिमेंटल फ़िल्म भी कहना चाहूँगा क्यूंकि इसकी कहानी इतिहास से कोसों दूर है| इस तरह की फिल्में अक्सर हॉलीवुड में बनती रहती हैं| 

कल्पना के आधार पर ये फ़िल्म है| फ़िल्म में जो दिखाया गया है वो इतिहास के पन्नों पर कहीं भी दर्ज़ नहीं है| वैसे 75 साल पहले के लोकेशंसपुरानी बिल्डिंग्स को देखना आपको बहुत ही अच्छा लगेगा| सिनेमाटोग्राफर को उनके काम के लिए... मैं उन्हें पूरे मार्क्स देना चाहूँगा| 

फ़िल्म गांधी गोडसे एक युद्ध देखने के बाद मुझे ये लगा कि दीपक अंतानी वाक़ई एक ज़बरदस्त अभिनेता हैं| गांधी की भूमिका में दीपक अंतानी ने लाजवाब काम किया है| चिन्मय मंडलेकर ने भी शानदार परफॉर्मेंस दी है| गोडसे की रोल में चिन्मय मंडलेकर भी 100% फिट बैठे हैं। मुझे ये कहना ही पड़ेगा कि दीपक अंतानी और चिन्मय मंडलेकर दोनों ही अपने अपने किरदारों को पूरी तरह से जिया है| 

तनीषा संतोषी यानी फ़िल्म के डाइरेक्टर राजकुमार संतोषी की बेटी की ये पहली फ़िल्म है| फ़िल्म में तनिशा संतोषी ने एक काल्पनिक भूमिका निभाई है| तनिशा संतोषी के लिए मैं एक बात तो बेशक कहना चाहूँगा कि आने वाले समय में वो कई हिरोइन्स को मात दे देंगी| उनके पास एक्टिंग के अलावा ग्लैमर भी है| वैसे फ़िल्म में सभी एक्टर्स ने कमाल का अभिनय किया है। 

फिल्म के गाने और गांधी के भजन बेशक ऑडियंस एंजॉय करेंगे| म्यूजिक डाइरेक्टर ए आर रहमान का जवाब नहीं| फ़िल्म का संगीत दिल को छू जाता है| अब मैं अगर फ़िल्म की कहानी की बात करूँ तो मैं ये कहूँगा कि जब भी मैं फ़िल्म रिवियू लिखता हूँ या बोलता हूँ मैं कोशिश करता हूँ कि मैं स्पोइलर ना दूँ

30 जनवरी 1948 को नाथुराम गोडसे ने महात्मा गांधी को तीन गोलियां मारीं थीं उसके बाद क्या हुआ ये हम सभी जानते हैं| इस फिल्म की कहानी में निर्देशक ने इस घटना के बाद की काल्पनिक दुनिया ऑडियंस के सामने पेश की है| फिल्म में दिखाया गया है कि गांधी गोडसे की गोलियों से बच जाते हैं और गोडसे को गिरफ्तार किया जाता है| गांधी जी बचने के बाद वो गोली मारने वाले गोडसे को माफ कर देते हैं... आगे क्या होता है इसके लिए आपको फ़िल्म देखना होगा

हाँ! मैं सिर्फ़ इतना कहूँगा कि... ये तो हम सभी जानते हैं कि महात्मा गांधी और नाथूराम गोडसे की मुलाकात कभी नहीं हुई है लेकिन 'गांधी गोडसे एक युद्ध' में वही दिखाया गया है कि अगर गांधी जी गोली लगने के बाद बच गए होते तो क्या होता? अगर महत्मा गांधी और गोडसे की मुलाकात हुई होती तो उनके बीच किस तरह की बातें होती। फिल्म की सबजेक्ट थोड़ी अलग है| फिल्म चूंकि डायलॉग पर ही पूरी तरह से आधारित है तो ये फिल्म न लगकर पूरे समय दो लोगों की बातचीत ही लगती है

राजकुमार संतोषी ने कलाकारों का चयन अपने हिसाब से बहुत सही किया है लेकिन दीपक अंतानी और चिन्मय मंडलेकर दोनों ही चेहरे हिंदी सिनेमा लवर्स के लिए थोड़े अनजाने हैं लिहाज़ा वे दर्शकों का ध्यान खींच पाने में कामयाब नहीं हुये हैंअगर मैं राजकुमार संतोषी के निर्देशन के बारे में कहूँ तो मैंने उनसे कुछ और भी एकस्पेक्ट किया था| बड़े परदे पर उनकी कमबैक उतनी इफेक्टिव नहीं रही। इस फ़िल्म को देखने के बाद आपके मन में भी कई सवाल उठेंगे... जवाब आपको ही देने होंगे| 

अब आप अपनी ओपिनियन सोशल मीडिया पर शेयर करना चाहेंगे या नहीं ये आपकी मर्ज़ी| फिलहाल मेरी यही है अर्ज़ी कि फ़िल्म कि कहानी पर ना जाएँ... बॉलीवुड ने एक्सपरिमेंट की है आप देख आएँ| लेखक असग़र वजाहत के एक नाटक से प्रभावित होकर राजकुमार संतोषी ने ये फिल्म बनाई है| उन्हीं के साथ मिलकर इसकी कहानी लिखी है| अब सवाल आपके सिर्फ़ 110 मिनट का है|      

 

 

 

 

 

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